Wednesday, December 25, 2013

धुंध-सामाजिक रीति रिवाज़ों की|


सामने सोफे पे गुंजन के पिताजी बैठे हैं|गहन चिंतित मुद्रा मे, बाल बिखरे हुए, माथे पर सलवटें, सलवटें भी इतनी की मानो होड़ मची हो माथे पर छा जाने की|आँखो के नीचे वाला हिस्सा आँसुओं से नम और कुछ आँसू अभी भी पलकों पर अटके अपनी बारी का इंतेज़ार करते हुए| आज उनका वो सपना हक़ीक़त मे बदल गया जिसका डर हर हिन्दुस्तानी पिता को रहता है|आज शाम गुंजन ने अपनी पसंद के लड़के से शादी करने का प्रस्ताव रखा|गुंजन के चाचाजी अपने बड़े भाई को समझाने मे लगे हैं| गुंजन की मा निरंतर रोए जा रही हैं| गुंजन की दोनो छोटी बहनें और उसकी चाची उन्हे चुप कराने मे लगी हैं|गुंजन आवाक , सन्न , एक कोने मे बैठी ये सब देख रही है| चाचाजी का बेटा करण बिन पानी की मछ्ली की तरह छटपटा रहा है, उसे उस लड़के का नाम पता चाहिए जिसे गुंजन ने पसंद किया है ताकि वो अपने दोस्तों को ले साथ ले जाकर उस लड़के को सबक सीखा सके|हालाँकि आज तक उसने कभी उन लड़को को सबक सीखने की कोशिश नही की जो उसकी बहन का रास्ता रोका करते थे,उसे छेड़ा करते थे|चाचाजी भरपूर कोशिश कर रहे हैं अपने भाई को मनाने की पर गुंजन के पिता उनकी हर दलील को ये कहकर खारिज़ कर रहे हैं क़ि " तुम्हारी कोई लड़की तो है नही, तुम क्या समझो इस दर्द को"|

गुंजन तीन बहनों मे सबसे बड़ी है| सबसे समझदार, सबसे ज़िम्मेदार|पढ़ाई मे भी वह अच्छी थी|अपने घर की आर्थिक स्थिति को भाँपते हुए उसने दसवीं के बाद से ही ट्यूशन पढ़ाने शुरू कर दिए थे तथा अपनी दोनो बहनों की पढ़ाई का ज़िम्मा खुद ही उठा लिया था| दो साल पहले पिताजी सीढ़ियों से गिर गये थे, तबसे उनके पैरों मे दर्द रहता है| पिछले छ: महीनो से दर्द बढ़ने के कारण उन्होने काम पर जाना भी छोड़ दिया |अब घर की सारी ज़िम्मेदारी गुंजन के कंधों पर थी|आज गुज़न सरकारी कॉलेज मे असिस्टेंट लेक्चरार है| वहीं उसकी मुलाकात शेखर से हुई|वह भी उसी कॉलेज मे कार्यरत है|वह शांत तथा जिग्यासु प्रवर्ती का व्यक्ति है| समाज के पिछड़े तथा भुला दिए गये वर्ग के लिए कुछ करने की उसकी ललक तथा उसके शानदार व्यक्तित्व का ही कमाल था की गुंजन, जिसने हमेशा अपने आप को इस विषय से दूर रखा, वह भी उसकी तरफ आकर्षित हुए बिना ना रह सकी| डेढ़ साल एक दूसरे के करीबी मित्र रहने के बाद, एक दूसरे को बारीकी से जानने समझने के बाद, दोनो ने एक दूजे का जीवनसाथी बनने का फ़ैसला किया|

गुंजन के चाचाजी उसके सबसे बड़े मुरीद हैं| शायद उनकी खुद की बेटी ना होना इसकी सबसे बड़ी वजह है|उनके दो बेटे हैं पर गुंजन को उन्होने हमेशा उन दोनो से ऊपर माना है|ज़रूरत पड़ने पर वो हमेशा गुंजन के लिए तैयार रहते है|इसीलिए वो रात भर से लगे हैं गुंजन का पक्ष साफ़गोई तथा मजबूती से रखने मे| उनके कुछ तर्क इस प्रकार हैं:-

"भैया गुंजन बचपन से ही आत्म निर्भर है,वह सारे ज़रूरी निर्णय हमेशा से खुद से लेती आई है| आज वो जो कुछ भी है अपनी मेहनत और सही समय पर सही निर्णय लेने की अपनी क्षमता के कारण है|वो ज़िंदगी मे बहुत कुछ करना चाहती है और कर भी सकती है क्योकि उसे खुद पर विश्वास है, अपने विवेक पर भरोसा है| उसका ये भरोसा मत तोड़िए,उड़ने से पहले ही उसके पर मत काटिए|आत्मविश्वास से लबरेज़ उसके अंतर्मन मे संदेह का बीज़ ना बोइए|"

"बचपन मे करण जब भी कुछ खाने से मना करता था तो आप हमेशा यही कहते थे की " अरे! ज़रा चख तो ले, बिना चखे कैसे कह सकता है की नही खाना, स्वाद का अंदाज़ा तो ले,फिर अगर ना खाना हो तो मत खाना"| आज अपनी ही बात पर अमल करने का वक़्त आया है तो पीछे मत हटिए| हम परिवार मे बड़े हैं, बच्चों को हमसे उम्मीदें हैं, हमारी छवि को बचा लीजिए और एक बार शेखर से मिलने के लिए हाँ कर दीजिए|"

इस पर गुंजन के पिताजी दबे हुए स्वर मे बोले "पर मोहल्ले वाले और रिश्तेदार क्या कहेंगे??"

"जब आपके वेतन से घर चलाने मे दिक्कत आती थी तब वह गुंजन ही थी जिसने आपका साथ दिया तथा जब पैर का दर्द बढ़ने के कारण आपने काम पर जाना छोड़ दिया तब वह गुंजन ही थी जिसने घर की ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर ली| तब ना ही कोई मोहल्ले वाला काम आया था और ना ही कोई रिश्तेदार| उसने अपनी दोनो बहनों को भी अपनी तरह ज़िम्मेदार बनाया और आपको कभी बेटे की कमी महसूस नही होने दी| सोचिए अगर आपने कोई लड़का गुंजन के लिए पसंद किया और शादी के बाद वो सही ना निकला तो क्या आप अपने आप को कभी माफ़ कर पाएँगे? मेरी बात मानिए एक बार शेखर से मिल लीजिए, इसलिए नही की ये एक एहसान हमें गुंजन पर कर देना चाहिए, बल्कि इसलिए कि ये उसका हक़ है जो उसने सालों इस परिवार की तथा आपकी सेवा करके कमाया है"

अगले दो दिनों तक घर की स्थिति गमगीन रही| ये दो दिन गुंजन के पिताजी के लिए कशमकश भरे रहे| एक तरफ समाज और उसके रीति रिवाज़ तथा दूसरी तरफ उनकी बेटी की खुशियाँ| उन्हे समझ नही आ रहा था कि आख़िर वो करें तो क्या?
वो इस वैचारिक उलझन रूपी भंवर से निकलने का रास्ता ढूँढ ही रहे थे कि तभी शर्माजी और गुप्ताजी ने घर में प्रवेश किया|
गुंजन के पिताजी का हाल चाल पूछकर तथा कुछ देर यहाँ वहाँ की बातें करने के बाद आख़िर वो गुंजन वाले मुद्दे पर आ ही गये तथा कहने लगे :
"हमने सुना रोशनी घर से भाग कर शादी कर रही है!!"

यह सुनते ही पिताजी के पैरों तले मानो ज़मीन ही खिसक गयी, उन्होने चिंतित तथा हताश नज़रों से अपने भाई की तरफ देखा|
गुंजन के चाचाजी ने बात को संभालते हुए कहा कि “ रोशनी नही गुंजन, गुंजन ने अपनी पसंद के लड़के से विवाह करने का प्रस्ताव हमारे सामने रखा है,वो भाग कर शादी नही कर रही और जो भाग कर शादी करते भी हैं वो पहले से नही बताते|

“अरे हाँ हाँ एक ही बात है|सुरेन्द्रजी हम २० साल से आपके पड़ोसी हैं, गुंजन का ये फ़ैसला सुनकर हमें बहुत दुख हुआ|अरे हमने उसे गोद मे खिलाया है, हमारी आखों के सामने बड़ी हुई, सुनकर यकीन ही नही हुआ कि वो ऐसा कर सकती है|सुरेन्द्र भाई साहब आपने अपने बच्चों को कुछ ज़्यादा ही छूट दे रखी है|अरे लड़कियों को पढ़ने या नौकरी करने के लिए इतनी दूर भेजने की ज़रूरत ही क्या है|ज़रूर वहाँ जा कर ग़लत संगत मे पड़ गयी होगी|आजकल के बच्चों की नब्ज़ पकड़ना हमारे आपके बस की बात कहाँ? अब तो सुरेंद्रजी अपनी नाक बचाने का एक ही तरीका है कि जल्द से जल्द अपनी बिरादरी मे ही कोई लड़का देखकर उसकी शादी कर दी जाए, वरना आजकल ऐसे मामलों मे लेने के देने पड़ जाते हैं|अरे! सुरेंद्रजी आपने मुरारी जी की बेटी का किस्सा सुना क़ी नहीं..”

इससे पहले की शर्माजी और गुप्ताजी कुछ और कहते गुंजन के चाचाजी से रहा नही गया और वो झल्लाई हुई मुद्रा मे आकर बोले :
" बस रहने दीजिए अब और कुछ मत बोलिए, आप तब से भैया को सुरेंद्र-२ कह कर बोल रहे हैं जबकि सुरेंद्र मेरा नाम है| कहने को आप २० साल से हमारे पड़ोसी हैं पर आजतक  कभी आपको इतनी फ़ुर्सत नही मिली की हमारा नाम ध्यान से जान पाते और आज अचानक से आपको इतनी फ़ुर्सत मिल गयी की आप चले आए हमारे बच्चों की किस्मत का फ़ैसला करने| अगर गुंजन ने अपनी पसंद के लड़के से शादी करने का फ़ैसला किया भी है तो क्या बुरा किया है, हवा का रुख़ बदल रहा है शर्माजी और ज़रूरत  है इस बदलते रुख़ के साथ अपनी जर्जर मानसिकता को बदलने की | ठहराव जड़त्व की निशानी है,रूका हुआ पानी अक्सर सड़ जाता है|ज़रूरत है धारा प्रवाह की,समय की पुकार सुनने की और बदलते वक़्त के साथ बदलने की|”

“ये जो धुंध हमने अपने चारों ओर फैला रखी है ना और जिसे हमने कंबल की तरह ओढ़ रखा है,ज़रूरत है उस धुंध को छाँटने की,ज़रूरत है अपने चारों ओर देखने की,थोड़ा और दूर तक देखने की|ज़रूरत है अपने बच्चों के दुख दर्द,मुसीबतों और परेशानियों को समझने की,उन्हे बाँटने की| ज़रूरत है इस मुश्किल भरे सफ़र मे उनका सहारा बनने का ना कि  उनके रास्ते की रुकावट|”

“आज हमारे बच्चे दिन रात मेहनत कर रहे हैं,जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं इस तेज़ी से बदलती दुनिया के साथ कदमताल मिलाने की|हर रोज़ अपने आप को साबित करने के लिए, अपने वज़ूद को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे है और इस कोशिश मे वो रोज़ जी रहे हैं और रोज़ मर रहे हैं|कही न ऐसा ना हो कि उनका सारा समय अपने खुद के समाज , अपने खुद के परिवार से लड़ने मे निकल जाए..”

चाचाजी का बोलना ज़ारी था की तभी पिताजी की आँखो से आँसू छलक उठे,वो लड़खड़ाते हुए उठे, अपनी छड़ी के सहारे चलकर गुंजन की ओर जाने लगे| चलते समय वो लड़खडाकर गिरने ही वाले थे कि गुंजन ने तेज़ी से आगे बढ़कर अपने गिरते हुए पिता को सहारा दिया और पिताजी ने गुंजन को गले लगा लिया,दोनो की आँखे आँसुओ से सराबोर थी की तभी संजू और रोशनी भी पिताजी और गुंजन से लिपट गयीं|अपनी तीनो बेटियों को एक साथ गले लगाते हुए पिताजी को एहसास हुआ कि यही तो थी उनकी दुनिया,उनकी खुशियाँ| बस इतनी सी बात वो नही समझ पाए थे अब तक| जिस दुनिया, समाज,उसके लोग और उसके रीति रिवाज़ो के बारे मे सोच सोचकर वो परेशान थे ,उस दुनिया को कभी उनकी फ़िक्र थी ही नही|

इधर शर्माजी और गुप्ताजी भी अपनी दाल ना ग़लती देख दबे पैर रुखसत हो लिए |

कुछ घंटे बीट जाने बाद घर का माहौल अब सामान्य था|सभी सदस्य हल्का महसूस कर रहे थे और संजू के द्वारा बनाई गयी चाचाजी की मनपसंद अद्रक, ईलायची वाली चाय का आनंद ले रहे थे|गुंजन बार-२ चाचाजी की ओर क्रतग्यता भरी नज़रों से देखती और हर बार चाचाजी उसे भावों से समझा देते कि उन्होने तो सिर्फ़ अपनी उस ज़िम्मेदारी का निर्वाह किया जो हर अभिभावक की अपने बच्चों के लिए होती है| तभी फ़ोन की घंटी बजी और रोशनी के फ़ोन उठाने पर उधर से आवाज़ आई:

"रोशनी!! मैं तेरी मौसी बोल रही हूँ, मैने सुना संजू घर से भाग कर शादी कर रही है|"

ये सुनकर रोशनी घर के सदस्यों की तरफ मुँह कर व्यंगात्मक अंदाज़ मे बोली "चाचाजी!!मौसीजी पूछ रही हैं संजू भाग कर शादी कर रही है क्या?" और सबकी हँसी छूट गयी|

12 comments:

  1. you know, while commenting, I, literally sat down in search of words to start with..there are thousands of things on which i can appreciate this whole blog..lemme come to NOIDA, we will sit down together and i will make u count to thousands..
    Stupendous work dost..Dil khush kar diya..

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  2. badhiya ....abhibhawako ke man me kuch adhure sawal jarur pure honge isse. grate.

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  3. bhai is blog ki khasiyat iski simplicity hain the way you portayed the characters was amazing . ek rishta sa jud gaya tha pehli kuch hee lines mein and ending ka to jawab nahi .

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    1. acha laga ye jaankr ki tujhe acha laga..ha yaar isiliye hindi me likha kyoki me chahta tha ki jo khyal mere man me aaya hai wo reader tak us bhaav me pahunche..

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    1. Thanks shiv..tum hamesha mere blog padhte ho..aage bhi saath dete rehna coz you know the biggest frailty of an artist is his audience..

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  5. Iski jarurat hame bhi pad sakti hai ...yaar meri wali ke papa bhi ese hi soch lenge to maja aa jayega ..... sahi baat hai yaar ruka hua pani sad jata hai .... ab jarurat hai to ek pravah ki ......

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    1. Haha..bilkul.bhagwan kare aise hi sochein wo..

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  6. Very Nice. I would like to share it on the FB page of Qwertythoughts.com if your permit.. :)

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