बेचारा वीकेंड,
क्या क्या करता,
किस किस के लिए करता,
और कितना करता,
उम्मीद भरी निगाहों से देखती ,
पूरी दुनिया में,
किस किस की मुरादें पूरी करता,
बेचारा वीकेंड।
यहाँ आदमी,
पांचो दिन खुद को घिसता है,
दिन रात काम की चक्की में पिस्ता है,
इस उम्मीद में कि एक दिन,
उसका भी वीकेंड आएगा,
इस वीकेंड का किस्सा भी,
एक भारतीय बच्चे सा है,
अपना कितना भी अच्छा निकल जाए,
फिर भी,
दुसरे का कैसा निकला,
उससे तुलना ज़रूर की जाती है,
अमूमन,
और बेहतर होने की उम्मीद,
हमेशा रखी जाती है।
यहाँ वीकेंड पर,
किसी को घर भागना है,
किसी को यारों संग महफ़िल लगानी है,
किसी को मेहबूबा को समय देना है,
किसी को ज़रूरी काम निपटाने है,
तो किसी को ढेर सारी मस्ती करनी है।
ढेर सारी मस्ती,
इसका भी अपना फ़साना है,
आखिर इसका मतलब क्या है,
वीकेंड अक्सर सोचा करता है,
पूरा हफ्ता,
लोगों के दिमाग में झाँका करता है,
और, मस्ती के,
अलग-अलग मतलब निकाला करता है,
कोई पब डिस्को जा रहा है,
कोई हुक्के का धुआँ उड़ा रहा है,
कोई ब्रांडी व्हिस्की गटक रहा है,
कोई गांजा मारकर लटक रहा है,
कोई फिल्मों का स्टॉक निपटा रहा है,
तो कोई मेहबूबा से इश्क़ फरमा रहा है।
पर जब असलियत में वीकेंड आता है,
तो, कोई पूरा दिन सोता है,
कोई टीवी देखकर भयंकर बोर होता है,
कोई वीकेंड कोचिंग जा रहा है,
कोई सेल्फ-स्टडी में सर खपा रहा है,
किसी को घर की सफाई करनी पड़ रही है,
किसी को हफ्ते भर की ग्रॉसरी लानी पड़ रही है।
सोमवार की सुबह,
जब सब बेमन से उठा करते हैं,
बिस्तर छोड़ा करते हैं,
खुद से नज़र मिलाने से डरते हैं,
तो वो अक्सर,
खुद को बख्श कर,
जमकर वीकेंड को कोसा करते हैं।
फिर नयी कहानियां बनायीं जाती हैं,
किस्से गढ़े जाते हैं,
अपने वीकेंड को,
दुसरे से बेहतर बताये जाने का,
हर भरसक प्रयास किया जाता है,
और इस तरह हफ्ता दर हफ्ता,
वीकेंड का लीजेंड आगे बढ़ाया जाता है।
Sunday, January 24, 2016
Monday, January 18, 2016
ये सर्दी
ये सर्दी कैसी सर्दी,
ये सर्दी बैरन सर्दी,
लंबे नुकीले नाखूनों वाली,
भीतर तक चीर कर जाती सर्दी,
ओस की बूँदों को तब्दील कर,
कोहरे का जाल बिछाती सर्दी,
पारे को नीचे गिरा,
शीत लहर के बाण चलाती ये सर्दी,
ये सर्दी कैसी सर्दी,
ये सर्दी बैरन सर्दी||
अपने ही आपे मे,
इठलाती बलखाती सर्दी,
मतलब की इस दुनिया में,
आदमी को आदमी वैसे ही नही दिखता,
अपने संग धुन्ध और कोहरा लाकर,
परेशानी को और बढ़ाती सर्दी,
ये सर्दी कैसी सर्दी,
ये सर्दी बैरन सर्दी||
ये सर्दी कभी अच्छी हुआ करती थी,
जब हमारी सर्दी की छुट्टी हुआ करती थी,
सुबह आलू-पराठा के संग चाय हुआ करती थी,
दोपहर मे उजली धूप हुआ करती थी,
जब भी बाहर निकला करते थे,
स्वेटर, जैकेट, जूते,
सर पर टोपी हुआ करती थी,
माँ इतना ख्याल रखा करती थी,
कि आज बैरन लगने वाली सर्दी,
कभी हमारी दोस्त हुआ करती थी||
माँ के हाथ से बने,
गर्मा-गर्म खाने की याद दिलाती ये सर्दी,
घर की चार दीवारी की,
गर्माहट का मोल बताती ये सर्दी,
सूनेपन का, अकेलेपन का,
बेदर्दी से एहसास कराती ये सर्दी,
ये सर्दी कैसी सर्दी,
ये सर्दी बैरन सर्दी||
काम को बोझ बनाती ये सर्दी,
नींद से बेजाँ प्यार कराती ये सर्दी,
पानी से बैर कराती ये सर्दी,
काम पर जाते वक़्त,
रास्ते को जंग का मैदान बनाती ये सर्दी,
प्रकृति के कोमल निर्मल हृदय को,
पत्थर सा कठोर बताती ये सर्दी,
ये सर्दी कैसी सर्दी,
ये सर्दी बैरन सर्दी||
ये सर्दी बैरन सर्दी,
लंबे नुकीले नाखूनों वाली,
भीतर तक चीर कर जाती सर्दी,
ओस की बूँदों को तब्दील कर,
कोहरे का जाल बिछाती सर्दी,
पारे को नीचे गिरा,
शीत लहर के बाण चलाती ये सर्दी,
ये सर्दी कैसी सर्दी,
ये सर्दी बैरन सर्दी||
अपने ही आपे मे,
इठलाती बलखाती सर्दी,
मतलब की इस दुनिया में,
आदमी को आदमी वैसे ही नही दिखता,
अपने संग धुन्ध और कोहरा लाकर,
परेशानी को और बढ़ाती सर्दी,
ये सर्दी कैसी सर्दी,
ये सर्दी बैरन सर्दी||
ये सर्दी कभी अच्छी हुआ करती थी,
जब हमारी सर्दी की छुट्टी हुआ करती थी,
सुबह आलू-पराठा के संग चाय हुआ करती थी,
दोपहर मे उजली धूप हुआ करती थी,
जब भी बाहर निकला करते थे,
स्वेटर, जैकेट, जूते,
सर पर टोपी हुआ करती थी,
माँ इतना ख्याल रखा करती थी,
कि आज बैरन लगने वाली सर्दी,
कभी हमारी दोस्त हुआ करती थी||
माँ के हाथ से बने,
गर्मा-गर्म खाने की याद दिलाती ये सर्दी,
घर की चार दीवारी की,
गर्माहट का मोल बताती ये सर्दी,
सूनेपन का, अकेलेपन का,
बेदर्दी से एहसास कराती ये सर्दी,
ये सर्दी कैसी सर्दी,
ये सर्दी बैरन सर्दी||
काम को बोझ बनाती ये सर्दी,
नींद से बेजाँ प्यार कराती ये सर्दी,
पानी से बैर कराती ये सर्दी,
काम पर जाते वक़्त,
रास्ते को जंग का मैदान बनाती ये सर्दी,
प्रकृति के कोमल निर्मल हृदय को,
पत्थर सा कठोर बताती ये सर्दी,
ये सर्दी कैसी सर्दी,
ये सर्दी बैरन सर्दी||
Tuesday, January 12, 2016
एक बार फिर
एक बार फिर दिल ज़ोर से धड़का है,
एक बार फिर साँस थमी है,
एक बार फिर नब्ज़ टटोली है,
एक बार फिर खुद को ज़िंदा पाया है,
एक बार फिर अपने हाथों की लकीरों को निहारा है,
एक बार फिर अपनी किस्मत को पुकारा है||
एक बार फिर आईने मे खुद को निहारा है,
एक बार फिर खुद से मुलाक़ात हुई है,
एक बार फिर कुछ पाने की तमन्ना है,
एक बार फिर कुछ खोने का डर है,
एक बार फिर फरियाद में हाथ उठा है,
एक बार फिर सजदे मे सर झुका है|
एक बार फिर शाम ने लालिमा छितराई है,
एक बार फिर सुबह ने उम्मीद जगाई है,
एक बार फिर फूलों ने खुशबू बिखराई है,
एक बार फिर चाँदनी ने ठंडक पहुँचाई है,
एक बार फिर रिश्तों में सच्चाई है,
एक बार फिर दुनिया में अच्छाई है,
एक बार फिर काली रात भागी है,
एक बार फिर नयी सुबह जागी है||
एक बार फिर लहू ने रफ़्तार पकड़ी है,
एक बार फिर कुछ कर गुजरने की मान मे आई है,
एक बार फिर जीने को आमादा हूँ,
एक बार फिर उम्मीद मे हूँ कि सवेरा होगा,
एक फिर उम्मीद में हूँ कि कल मेरा होगा||
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